सरोगेसी क्या है: इन दिनों पूरे इंडिया में सरोगेसी (Surrogacy) यानि स्थानापन्न मातृत्व/किराए की कोख काफी चर्चे में है | इसका मतलब आसान भाषा में अगर समझा जाए तो सरोगेसी का मतलब है किसी और की कोख से अपने बच्चे को जन्म देना। अगर कोई पति-पत्नी बच्चे को जन्म नहीं दे पा रहे हैं, तो किसी अन्य महिला की कोख को किराए पर लेकर उसके जरिए बच्चे को जन्म देना सरोगेसी की प्रक्रिया (Surrogacy Process) कही जाती है। बच्चा पैदा करने के लिए जिस महिला की कोख को किराए पर लिया जाता है, उसे सरोगेट मदर (Surrogate Mother) कहा जाता है।
लखनऊ में एक प्रमुख सरोगेसी सेंटर की संचालिका डॉ सुनीता चंद्रा के अनुसार कि क्या है सरोगेसी का मतलब वे कहती हैं कि कुछ महिलाओं के गर्भाशय में प्राकृतिक-तकनीकी कमी के कारण भ्रूण का पूरा विकास नहीं हो पाता है। भ्रूण के परिपक्व होने के पहले ही महिला का गर्भपात हो जाता है। ऐसी स्थिति में ऐसी महिलाएं मातृत्व सुख से वंचित रह जाती हैं। लेकिन अब आईवीएफ तकनीकी की सहायता से ऐसी महिलाओं को भी मातृत्व का सुख दिया जाना संभव होने लगा है।
ऐसी स्थिति में महिला के गर्भाशय में अंडे के निषेचित होने के बाद एक निश्चित अवधि पर उसे महिला के गर्भ से निकालकर एक अन्य स्वस्थ महिला के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है जहां इसका पूर्ण विकास होता है। समय पूरा होने पर इससे एक स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है। इसमें पति-पत्नी और एक तीसरी महिला (किराए की कोख) सरोगेट मदर (Surrogate Mother) के नाम से जाना जाता है।
कितना आता है सरोगेसी प्रक्रिया में खर्च :
डॉ चंद्रा बताती है कि सरोगेसी एक बहुत महंगी प्रक्रिया है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां 70 से ज्यादा महिलाएं हर साल अपनी कोख बेचती हैं। हर महीने 6 से आठ सरोगेट मदर बच्चे को दे रही है। सबसे खास बात ये है कि 90 प्रतिशत मामलों में सरोगेट मदर को कोख का किराया दिया जाता है। सरोगेसी प्रक्रिया में खर्च 15 -20 लाख रूपए आसानी से लग जाते हैं। वे आगे कहती हैं कि सरोगेसी का ऑप्शन चुनना गलत नहीं हैं लेकिन आपको पूरी जांच पड़ताल करनी जरूरी है।
डॉ चंद्रा बताती है कि सरोगेसी एक बहुत महंगी प्रक्रिया है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां 70 से ज्यादा महिलाएं हर साल अपनी कोख बेचती हैं। हर महीने 6 से आठ सरोगेट मदर बच्चे को दे रही है। सबसे खास बात ये है कि 90 प्रतिशत मामलों में सरोगेट मदर को कोख का किराया दिया जाता है। सरोगेसी प्रक्रिया में खर्च 15 -20 लाख रूपए आसानी से लग जाते हैं। वे आगे कहती हैं कि सरोगेसी का ऑप्शन चुनना गलत नहीं हैं लेकिन आपको पूरी जांच पड़ताल करनी जरूरी है।
जानवरों में भी होती है सरोगेसी प्रक्रियाअभी तक आपने सेरोगेसी प्रक्रिया सिर्फ इंसानों में ही सुनी होगी पर हम आपको जानवरों में भी सेरोगेसी प्रक्रिया के बारे में बताने जा हैं। आज से चार साल पहले यूपी सरकार ने गाय की खास नस्ल को बचाने के लिए सरोगेसी का सहारा लेने का फैसला लिया था। गाय की इस खास नस्ल का नाम ‘गंगातीरी’ है। पशुधन विकास विभाग ने 290 गंगातीरी नस्ल की गायों की कोख किराए पर लिया था । यह गायें सरोगेट मदर जैसी थी, जिनसे पैदा होने वाले बछड़े और बछिया गंगातीरी की नस्ल को आगे बढ़ाने के काम आये ।
बता दें कि यूपी में गाय की गंगातीरी प्रजाति खत्म होती जा रही है। किसी जमाने में यह प्रजाति इलाहाबाद से बलिया तक गंगा के किनारे मिलती थी, लेकिन इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। ऐसे में रोज 10 से 15 लीटर दूध देने वाली गंगातीरी गायों को बचाने के लिए राज्य के पशुधन विकास विभाग ने 290 गंगातीरी नस्ल की गायों की कोख किराए पर लेने का फैसला किया था । यह गायें सरोगेट मदर जैसी है , जिनसे पैदा होने वाले बछड़े और बछिया गंगातीरी की नस्ल को आगे बढ़ाने के काम करेंगी ।
इन कारणों से भी महिलाएं लेती हैं सरोगेसी का सहाराडॉ चन्द्रा स्वीकारती हैं कि उनेक पास कई दफा अमीर घरों से ऐसे मामले भी आते हैं जिनमें महिला अपने फिगर को लेकर बच्चे पैदा नहीं करना चाहतीं। कुछ का तो यह भी तर्क होता है कि अपनी लाइफ स्टाइल की वजह से उन्हें नौ महीने तक इस स्ट्रेस से गुजरना ठीक नहीं लगता। डॉ चन्द्रा कहती है कि ऐसे मामलों पर रोक के लिए सख्त बिल लाना ही समाज के लिए हितकर है।
सेरोगेसी प्रक्रिया में विवाद भी होते हैं
सेरोगेसी प्रक्रिया में विवाद भी होते हैं
डॉ सुनीता चंद्रा बताती हैं कि कई बार बच्चे को जन्म देने के बाद सरोगेट मां भावनात्मक लगाव के चलते बच्चे को देने से इनकार कर देती है और ऐसी स्थिति में विवाद की स्थिति निर्मित हो जाती है। ऐसे कई मामले सामने भी आए हैं। दूसरी ओर कई बार ऐसा भी होता है जब जन्म लेने वाली संतान विकलांग होती है या अन्य किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त होती है तो इच्छुक दंपति उसे लेने से इनकार कर देते हैं।
जानिए, इन स्थितियों में बेहतर विकल्प है सरोगेसी-आईवीएफ उपचार फेल हो गया हो.
-बार-बार गर्भपात हो रहा हो.
-भ्रूण आरोपण उपचार की विफलता के बाद.
-गर्भ में कोई विकृति होने पर.
-गर्भाशय या श्रोणि विकार होने पर.
-दिल की खतरनाक बीमारियां होने पर. जिगर की बीमारी या उच्च रक्तचाप होने पर या उस स्थिति में जब गर्भावस्था के दौरान महिला को गंभीर हेल्थ प्रॉब्लम होने का डर हो.
-गर्भाशय के अभाव में.
-यूट्रस का दुर्बल होने की स्थिति में
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